कुरुक्षेत्र के मैदान में
खड़ी द्रौपदी
सोच रही है
किसके लिये
आखिर किसके लिये
हुआ ये महाभारत
कहते हैं लोग
हुआ ये मेरे लिये !
नहीं ! मेरे लिये तो
नहीं हुआ
ये महासमर।
होता गर मेरे लिये
तो हो जाता उसी पल
जब हुआ था
मेरा चीरहरण।
मगर नहीं हुआ
उस दिन।
न न मेरे लिये
नहीं थी ये लड़ाई
ये लड़ाई तो थी
अंधी प्रतिज्ञा की।
ये लड़ाई थी
धृतराष्ट्री आकांक्षाओं की
और ये लड़ाई थी उसकी
जिसने शस्त्र उठाये बिना
लड़ी और जीत ली
ये लड़ाई।
और मैं
बिना लड़े
हारी सी
खड़ी हुँ अकेली
और कहते हैं लोग कि
मेरे लिये। ………
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