Saturday, August 4, 2012

 सोचा मैंने
लिखूँ एक कविता
हरी मखमली घास पर
मगर पशुओं ने
चर ली सारी घास
फिर सोचा
घास नहीं तो
चिड़िया  पर लिखूँ
आकाश में उन्मुक्त
विचरती चिड़िया
मगर बाजों ने
नोच लिए सारे पंख
फिर फूल ,नदी ,और निर्झर
मरते रहे लगातार
अब चुने हैं मैंने
 पत्थर
लिख रही हूँ मैं
पत्थरों  पर
कविता पत्थरों की