सोचा मैंने
लिखूँ एक कविता
हरी मखमली घास पर
मगर पशुओं ने
चर ली सारी घास
फिर सोचा
घास नहीं तो
चिड़िया पर लिखूँ
आकाश में उन्मुक्त
विचरती चिड़िया
मगर बाजों ने
नोच लिए सारे पंख
फिर फूल ,नदी ,और निर्झर
मरते रहे लगातार
अब चुने हैं मैंने
पत्थर
लिख रही हूँ मैं
पत्थरों पर
कविता पत्थरों की
लिखूँ एक कविता
हरी मखमली घास पर
मगर पशुओं ने
चर ली सारी घास
फिर सोचा
घास नहीं तो
चिड़िया पर लिखूँ
आकाश में उन्मुक्त
विचरती चिड़िया
मगर बाजों ने
नोच लिए सारे पंख
फिर फूल ,नदी ,और निर्झर
मरते रहे लगातार
अब चुने हैं मैंने
पत्थर
लिख रही हूँ मैं
पत्थरों पर
कविता पत्थरों की