Friday, May 15, 2015


एक औरत
कूट रही है धान
ढेंकी में धान के साथ
कूट देना चाहती है वह
साऱी  बाधाएं
जो खड़ी हो जाती हैं
अक्सर उसके सामने ।

 एक औरत पछोर रही है अनाज
भूसी की तरह
उड़ा देना चाहती है वह
अपने सारे दुःखों को

एक औरत चला रही है छेनी
गढ़ना चाहती है वह
पत्थर पर एक इबारत ।

एक औरत लिख रही है
अपनी कथा
उसे नहीं बींधते
बान  कामदेव के।

प्रिय की याद  में
अपना आपा भी नहीं
खोया है उसने
वह खड़ी है धरती पर
उसने किया है संकल्प
वह बदल देगी
सारे मिथक
जो उसे करते है कमजोर
बना देते हैं उसे
सिर्फ देह ।
औरत अब
अपने हाथों से
गढ़ रही है
अपना वज़ूद