Thursday, April 19, 2012

सपने देखे तो बहुत
मगर बिखर गये ऐसे
तट से टकराकर जैसे
बिखर जाती हैं लहरें
 चुने थे कुछ फूल
मगर समय की आँधी में
कब तक टिकते भला
बिखर गयीं  पंखुरियां
बनाया फिर शीश महल
पर वह भी चूर -चूर
सह न सका
पत्थर जमाने के
मगर खत्म नहीं हुआ है
सब कुछ
अभी भी शेष हैं
आशाओं की ईंट
 और  इरादों की सीमेंट
गढ़ना हैअपना  वजूद
कुछ ऐसा कि वह
थिर रहे आँधियों में
और सह सके पत्थर
जमाने के   

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