Monday, March 21, 2011

वास्तु


बिटिया चाहती है
 कि पोंछ दे
 पिता का पसीना 
माँ के दुखों को
 दे दे एक छप्पर
 कि गुनगुनी धूप में
 सूखती बढ़ियों से
 सूख जाएँ सारे दुःख
 इसी लिए वह सजती है
 बार -बार .
 और मुखोटे
 परखते  हैं उसे
 फिर बढ़ जाते है    आगे 
  बेहतर
वस्तु की तलाश  में ,

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