भरी दोपहर में वह
बुन रही है ठंडक
खस के तिनकों को
बाँधती आँखें
छण भर देखती हैं
तपते सूरज को
फिर सहेजने लगती हैं
खस के बिखरे तिनके
अपनी काया को तपाकर वह
सहेज रही है ठंडक
उनके लिए जो
डरते हैं
सूरज की आँच से
बुन रही है ठंडक
खस के तिनकों को
बाँधती आँखें
छण भर देखती हैं
तपते सूरज को
फिर सहेजने लगती हैं
खस के बिखरे तिनके
अपनी काया को तपाकर वह
सहेज रही है ठंडक
उनके लिए जो
डरते हैं
सूरज की आँच से
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