मैंने चाहा था
तुम आओ जीवन में ऐसे
जैसे आती है हवा
जैसे आती है भोर की
पहली किरण |
तुम आओ जीवन में ऐसे
जैसे आती है हवा
जैसे आती है भोर की
पहली किरण |
जैसे फूटता है अंकुर
निःशब्द ,नीरव |
जैस खिलता है फूल
अपनी ही खुशबू मे झूमता हुआ |
मगर तुम आये
आँधी की तरह
मेरे वज़ूद को झकझोरते
तपते सूरज से
छोड़े तुमने अनेक निशान |
जैस खिलता है फूल
अपनी ही खुशबू मे झूमता हुआ |
मगर तुम आये
आँधी की तरह
मेरे वज़ूद को झकझोरते
तपते सूरज से
छोड़े तुमने अनेक निशान |
वट वृच्छ की तरह
छा गये तुम |
सोख लीं तुमने
सारी कोमलता
झुलस गयीं
सारी आशाए |
छा गये तुम |
सोख लीं तुमने
सारी कोमलता
झुलस गयीं
सारी आशाए |
फिर भी निःशेष
नहीं हुआ है सब
नहीं हुआ है सब
बाकी है अभी थोड़ी सी नमी |
और मैं आज भी
चाहती हूँ कि
तुम आओ ऐसे
जैसे आती है हवा _________________|
चाहती हूँ कि
तुम आओ ऐसे
जैसे आती है हवा _________________|
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