मन के आगन में
व्यतीत ने उकेरे
अनेक चित्र
मिटकर भी मिटे नहीं
बदरंग हो कर भी
रहे हमेशा
मन के आस पास
चाँद छूने की आभिलाषा में
हर बार मिले
घोंघे और खाली सीपियाँ
सागर की लहरों सी मैं
बिखरती रही
बार बार
व्यतीत ने उकेरे
अनेक चित्र
मिटकर भी मिटे नहीं
बदरंग हो कर भी
रहे हमेशा
मन के आस पास
चाँद छूने की आभिलाषा में
हर बार मिले
घोंघे और खाली सीपियाँ
सागर की लहरों सी मैं
बिखरती रही
बार बार
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