आज हैरान हैं
घीसू और माधव
विस्फरित नेत्रों से
वे देख रहे हैं
बुधिया की आदम लाश
पर्वतों और घाटियों से
रिस रहा है लहू
वे आज नहीं मांगेंगे पैसे
उसके कफन के लिए
जिन हाथों ने
नोच लिए फटे चीथड़े तक
उन्हीं के आगे
कैसे पसारें अपनें हाथ
कफन के लिए
नहीं नहीं अब और नहीं
घीसू और माधव
विस्फरित नेत्रों से
वे देख रहे हैं
बुधिया की आदम लाश
पर्वतों और घाटियों से
रिस रहा है लहू
वे आज नहीं मांगेंगे पैसे
उसके कफन के लिए
जिन हाथों ने
नोच लिए फटे चीथड़े तक
उन्हीं के आगे
कैसे पसारें अपनें हाथ
कफन के लिए
नहीं नहीं अब और नहीं
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