Wednesday, June 8, 2011

इक्कीसवीं सदी का द्वार

इक्कीसवीं सदी का द्वार        
  खुला है बजार में
 बाज़ार में हैं हम 
 औरहमारे सपने 
 हमारे सारे सम्बन्ध
 और सारी संवेदनाएं

 बिकेंगी बजार में
 इसीलिए लोग अब  
 खर्च नहीं करते उसे
  हृदय  को बदल दिया  है
 गोदाम में
 वे जानते हैं
 इसी सदी में पड़ेगा
 संवेदनाओं का अकाल
 बहुत ऊँची दरों पर
   बिकेंगी संवेदनाएं
 उन्हें इंतजार है  
 उसी समय का
   

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