Thursday, April 7, 2011

मेरे शहर की पगली


मेरे शहर में
 रहती थी एक पगली 
 धूल मिट्टी से सनी
  नंगी देह लिए
 डोली थी वह .
 असाधारण नहीं था 
 उसका यूँ  नंगी डोलना
 अपने आप से यूँ ही बोलना .
 असाधारण तो है
 उसका मरना
 वह मरी न थी
 शीत और ताप से .
 भूख में भी बची रही थी
 उसकी जिजीविषा .
 मगर आज मर दिया उसे 
 उसकी ही देह ने
 पागल ही सही 
  उसके पास एक
 देह तो थी
 देह जो हर
 हाल में
 होती है
 सिर्फ और सिर्फ देह

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