रहती थी एक पगली
धूल मिट्टी से सनी
नंगी देह लिए
डोली थी वह .
असाधारण नहीं था
उसका यूँ नंगी डोलना
अपने आप से यूँ ही बोलना .
असाधारण तो है
उसका मरना
वह मरी न थी
शीत और ताप से .
भूख में भी बची रही थी
उसकी जिजीविषा .
मगर आज मर दिया उसे
उसकी ही देह ने
पागल ही सही
उसके पास एक
देह तो थी
देह जो हर
हाल में
होती है
सिर्फ और सिर्फ देह
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