मनस्वी
Monday, March 21, 2011
वास्तु
बिटिया चाहती है
कि पोंछ दे
पिता का पसीना
माँ के दुखों को
दे दे एक छप्पर
कि गुनगुनी धूप में
सूखती बढ़ियों से
सूख जाएँ सारे दुःख
इसी लिए वह सजती है
बार -बार .
और मुखोटे
परखते हैं उसे
फिर बढ़ जाते है आगे
बेहतर
वस्तु की तलाश में ,
1 comment:
रश्मि प्रभा...
March 20, 2011 at 10:16 AM
marm ko ukerti rachna
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