एक वर्ण ने बदल दिए अर्थ
अंगूठी की खोज में भटकती रही शकुन्तला
शापित मातृत्व का पर्याय बनी कुंती, होती रही लांछित
पाषाणी अहम् में पिस गई गौतमी
और भी कितनी कितनी कथाएं,
न जाने कितनी लछमन रेखाएं
खिचीं गई है हमारे लिए
मन पूछता है मुझसे क्या इसी नींव पर
रखोगी अपने भविष्य की ईंट
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