नारी को
देवी मानने वाला समाज
उसे इंसान क्यों नहीं मानता
मेरे मन में कौंधता यह प्रश्न
झकझोरता है मुझे |
पूछती हूँअपने आप से
क्यों ?क्यों होता है ऐसा ?
मन कहता -
देवियाँ करती है त्याग
रहती हैं मौन
कष्ट में भी
बस पालती हैं कर्तव्य
इसीलिए देवी हैं
कभी कुछ माँगती नहीं
अपना अधिकार तो कभी नहीं |
अपना अस्तित्व खोकर ही
नारी देवी है
अर्पण करके सर्वस्व
बन जाती है देवी |
हम उसे देवी तो मान सकते हैं |
इंसान नहीं |
इंसान बनते ही नारी
बन जाती है कुलटा और कलंकिनी
क्योंकि वह माँगती है
अपना अधिकार |
उसे नहीं मालूम
वह देवी तो बन सकती है
मगर इंसान नहीं
देवी मानने वाला समाज
उसे इंसान क्यों नहीं मानता
मेरे मन में कौंधता यह प्रश्न
झकझोरता है मुझे |
पूछती हूँअपने आप से
क्यों ?क्यों होता है ऐसा ?
मन कहता -
देवियाँ करती है त्याग
रहती हैं मौन
कष्ट में भी
बस पालती हैं कर्तव्य
इसीलिए देवी हैं
कभी कुछ माँगती नहीं
अपना अधिकार तो कभी नहीं |
अपना अस्तित्व खोकर ही
नारी देवी है
अर्पण करके सर्वस्व
बन जाती है देवी |
हम उसे देवी तो मान सकते हैं |
इंसान नहीं |
इंसान बनते ही नारी
बन जाती है कुलटा और कलंकिनी
क्योंकि वह माँगती है
अपना अधिकार |
उसे नहीं मालूम
वह देवी तो बन सकती है
मगर इंसान नहीं
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