Thursday, March 26, 2015

कुरुक्षेत्र  के मैदान में 
खड़ी द्रौपदी
 सोच रही है
किसके लिये 
आखिर किसके लिये 
हुआ ये महाभारत 
 कहते हैं लोग
हुआ ये मेरे लिये !
नहीं ! मेरे लिये तो 
नहीं हुआ 
ये महासमर। 
होता गर मेरे लिये 
तो हो जाता उसी पल 
जब हुआ था 
 मेरा  चीरहरण। 
मगर नहीं हुआ 
उस दिन। 
 न न मेरे लिये 
 नहीं थी ये लड़ाई
    ये लड़ाई तो थी       
  अंधी  प्रतिज्ञा की। 
ये लड़ाई थी 
धृतराष्ट्री आकांक्षाओं की 
और ये लड़ाई थी उसकी 
जिसने शस्त्र उठाये बिना 
लड़ी और जीत ली 
ये लड़ाई। 
और मैं 
बिना लड़े 
हारी सी
 खड़ी हुँ अकेली 
और कहते हैं  लोग कि 
मेरे लिये। ……… 
 
 
 
 
  
 
 
   
  

Thursday, March 5, 2015

होली का पाकर आमंत्रण
नेता जी घबराये
पल भर देर किये बिन
दौड़े दौड़े आये।
कहने लगे बचाओ हमको
हम न खेलेंगे होली।
हमने पूछा बात है क्या
ये कैसी है ठिठोली ?
तरह तरह के रंग रंगे
पर कभी न कोई फर्क पड़ा
होली के इन रंगों से क्यों
इस  चेहरे का रंग उड़ा ?
कहने लगे अजी सुनिये
तुमसे कुछ न छिपायेंगे
कला तन और काला  मन भी
अब किस पर रंग चढ़ायेंगे
कपड़े भी  गर काले हुये तो
कुर्सी कैसे बचायेंगे