Thursday, September 29, 2011

नारी

नारी   को 
  देवी मानने वाला समाज 
 उसे इंसान क्यों नहीं मानता
 मेरे मन में कौंधता यह प्रश्न 
 झकझोरता है मुझे |
 पूछती हूँअपने आप से 
 क्यों ?क्यों होता है ऐसा ?
 मन कहता -
 देवियाँ करती है त्याग
 रहती हैं मौन 
 कष्ट में भी 
 बस पालती  हैं  कर्तव्य 
 इसीलिए देवी हैं
 कभी कुछ माँगती नहीं
 अपना अधिकार तो कभी नहीं |
 अपना अस्तित्व खोकर ही
 नारी देवी है
 अर्पण करके सर्वस्व 
 बन जाती है देवी |
 हम उसे देवी तो मान सकते हैं |
 इंसान नहीं |
 इंसान बनते ही नारी
 बन जाती है कुलटा और कलंकिनी
 क्योंकि वह माँगती है
 अपना अधिकार |
 उसे नहीं मालूम
 वह देवी तो बन सकती है
 मगर इंसान नहीं

Saturday, September 3, 2011

गंगा

   गंगा नाम   नहीं                                                                                              
      गोमुख से निकलती
  चंचल धारा का
   गंगा तो नाम है
  एक खामोश प्रवाह का
 जिसमें तिरकर
 शमित होते हैं ताप |
 हिरदय में छिपाकर
  पीड़ा का सागर
   गंगा बन जाती है
  गंगा सागर